• karimadvocate@gmail.com
  • +91 9839027055

What to do if police do not file FIR?

पुलिस एफ0आई0आर0 न लिखे तो क्या करें ?  


पिछले ब्लाॅग में हमने एफ0आई0आर0 के बारे में भारत का कानून क्या कहता है, इस सम्बंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की थी। आज के इस लेख में इस विषय पर बात करेंगे कि पुलिस यदि किसी संज्ञेय अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करे तो क्या करें? पुलिस के द्वारा एफ0आई0आर0 दर्ज करने से मना करने पर कानूनी रास्ता क्या है?  


जैसा कि पिछले ब्लाॅग में आपको बताया था कि किसी व्यक्ति के विरूद्ध संज्ञेय अपराध की घटना होने पर धारा दं0प्र0सं0 के अन्तर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट सम्बंधित थाने में दर्ज करा सकते हैं। यदि पुलिस उक्त अपराध की एफ0आई0आर0 दर्ज नहीं करती तो धारा 154 की उपधारा 3 दं0प्र0सं0 के तहत जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को एफ0आई0आर0 दर्ज करने हेतु शिकायती प्रार्थनापत्र दे सकते हैं। इसके बाद भी यदि एफ0आई0आर0 दर्ज नहीं होती तो क्या किया जाये? 


न्यायालय के माध्यम से एफ0आई0आर0 दर्ज कराने का आदेश दिया जाना ! 


पुलिस के द्वारा किसी संज्ञेय अपराध की एफ0आई0आर0 दर्ज किये जाने से मना कर दिया जाता है तो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को लिखित शिकायती प्रार्थनापत्र देने के उपरांत सम्बंधित प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के न्यायालय में धारा 156 की उपधारा 3 दं0प्र0सं0 के तहत संज्ञेय अपराध की विवेचना किये जाने हेतु आवेदन किया जा सकता है। आइये देखते हैं धारा 156(3) दं0प्र0स0ं क्या कहती है- 


‘‘156(3) दं0प्र0सं0 - धारा 190 के अधीन सशक्त किया गया कोई मजिस्ट्रेट पूर्वोक्त प्रकार के अन्वेषण का आदेश कर सकता है।‘‘ 
 

“Any magistrate empowered under section 190 may order such an investigation as above–mentioned.” 


उक्त प्रावधान से यह स्पष्ट है कि धारा 190 के अन्तर्गत सशक्त मजिस्ट्रेट को विवेचना किये जाने की शक्ति प्राप्त है। यहाॅं पर हम यह भी स्पष्ट कर दें कि किसी भी संज्ञेय अपराध की विवेचना से पूर्व प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाती है, अर्थात यदि मजिस्ट्रेट के द्वारा संज्ञेय अपराध की विवेचना का आदेश दिया जाता है तो यह माना जायेगा कि सम्बंधित थाने का भारसाधक अधिकारी पहले उस मामले में एफ0आई0आर0 दर्ज करेगा। इसके बाद उस मामले का अन्वेषण किया जायेगा। 

 
यहाॅं पर इस बात को भी स्पष्ट करना जरूरी है कि धारा 156(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता में यह प्रावधान दिया गया है कि कोई पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है, जिसकी जाॅच या विचारण करने की शक्ति उस थाने की सीमाओं के अन्दर के स्थानीय क्षेत्र की अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबन्धों के अधीन है, अर्थात धारा 154 दं0प्र0सं0 में संज्ञेय मामले की एफ0आई0आर0 दर्ज होने के उपरांत पुलिस अधिकारी को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अन्वेषण किये जाने की शक्ति प्राप्त है। संज्ञेय मामलों मे उसी तरह का अन्वेषण धारा 156(3) दं0प्र0सं0 के अन्तर्गत प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को भी प्राप्त है।  


माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ललिता कुमारी बनाम गर्वनमेंट आफ यूपी व अन्य, के मामले में 12 नवम्बर 2013 को धारा 156(3) दं0प्र0सं0 के सम्बंध में लैण्डमार्क फैसला दिया गया था।  
 

Call Us: 9839027055