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Supreme Court pronounced important decision regarding 304B IPC (dowry death)

304बी आई0पी0सी0(दहेज हत्या) के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला 


सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर आश्चर्य जताया  


सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच जिसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पी0एस0 नरसिम्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार सिन्हा शामिल थे, पंजाब और हरियाण हाईकोर्ट की एक खण्डपीठ के द्वारा एक व्यक्ति को दोषसिद्ध किये गये फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी।  


केस के तत्व कुछ इस प्रकार हैं कि एक महिला की शादी 1987 में हुई थी, महिला के मायके वालों को 05 नवम्बर 1991, दीवाली के दिन ज्ञात हुआ  िकवह जल गई है और उसे अस्पताल ले जाया गया है। अस्पताल में कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा उसका बयान भी दर्ज किया गया था। मजिस्ट्रेट को दिये बयान मंे बताया था कि उसके पति ने उसे जला दिया है। इलाज के दौरान ही अस्पताल में महिला की मृत्यु हो गई थी। महिला के घर वालों के द्वारा पति और सास-ससुर के विरूद्ध धारा 302, सपठित धारा 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। विवेचना उपरांत आरोप पत्र न्यायालय के समक्ष दाखिल किया गया था। धारा 302 के तहत आरोप तय किये गये। 


विचारण न्यायालय द्वारा धारा 304(बी) के तहत दोषी ठहराया, लेकिन धारा 302 के तहत संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया था। विचारण न्यायालय के इस आदेश के विरूद्ध दोनों पक्षों ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की थी। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट की खण्डपीठ के द्वारा ससुर को धारा 304(बी) के तहत दोषमुक्त कर दिया गया था। लेकिन पति को दोष सिद्ध कर दिया था। हाईकोर्ट के इस आदेश के द्वारा पति के समक्ष अपील दाखिल की गई थी।  


सुप्रीम कोर्ट की बेंच के द्वारा अपील की सुनवाई करते हुए कहा कि दहेज उत्पीड़न के आरोप अस्पष्ट थे। अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि,  
‘‘इसलिये हमारा मानना है कि उचित संदेह से परे यह साबित करने के लिये कोई सबूत नहीं है कि दहेज की मांग पूरी होने के कारण मृतक को परेशान किया गया था, इसलिये हमने पाया कि अभियोजन पक्ष के द्वारा धारा 304(बी) के तहत मामला नहीं बनाया गया है।  


न्यायालय ने यह भी कहा कि जिन परिस्थितियों में मृत्यु पूर्व बयान दर्ज किया गया था, उससे यह चिन्ता पैदा होती है, क्या यह स्वेच्छिक बयान था, या इसे प्रभावित किया गया था, या सिखाया गया था। न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा मृत्युपूर्व दिये गये बयान के ट्रीटमेंट में स्पष्ट असंगतता पर भी जोर दिया गया है। बयान को पति के खिलाफ सबूत के रूप में स्वीकार किया गया था, जबकि मृतका के ससुर के मामले में इस पर अविश्वास किया गया था।  


इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के द्वारा पति को दोषी ठहराने के लिये मृत्युपूर्व बयान पर भरोसा करने और ससुर के मामले में भरोसा न करने पर आश्चर्य जताया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच के द्वारा अपीलकर्ता(पति) की दोषसिद्धि को ही रद कर दिया गया। 


केस का विवरण - अपराधिक अपील सं0 396/2010, फूल सिंह बनाम स्टेट आफ हरियाणा, दिनाॅंक 27.09.2023 
 

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