- अग्रिम जमानत का प्राविधान (Provision of Anticipatory Bail )
धारा 438. गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत स्वीकृत करने के लिए निदेश.
1 (1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि हो सकता है उसको किसी अजमानतीय अपराध के किये जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जाये, तो यह इस धारा के अधीन निर्देश के लिये उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाये, और उच्च न्यायालय, अन्य बातों के साथ, निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हुये अर्थात् :
(1) अभियोग की प्रकृति और गम्भीरता;
(11) आवेदक को पूर्ववत् जिसमें यह तथ्य भी है कि क्या उसने किसी संज्ञेय अपराध की बाबत किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर पहले सजा भुगती है;
(11) न्याय से भागने की आवेदक की सम्भाव्यता; और
(iv) जहां आवेदक द्वारा उसे इस प्रकार गिरफ्तार कराकर क्षति पहुंचाने या अपमान करने अभियोग लगाया गया है,
के उद्देश्य से
या तो तत्काल आवेदन अस्वीकार करेगा या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिये अन्तरिम आदेश देगा : परन्तु यह कि जहां, यथास्थिति, उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ने इस उपधारा के अधीन कोई अन्तरिम आदेश पारित नहीं किया है या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिये आवेदन को अस्वीकार कर दिया है वहां किसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी इस बात के लिये मुक्त रहेगा कि ऐसे आवेदन में आशंकित अभियोग के आधार पर आवेदक को बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सके।
(1क) जहां न्यायालय उपधारा (1) के अधीन अन्तरिम आदेश मंजूर करता है वहां वह तत्काल एक सूचना जो सात दिवस से अन्यून की सूचना न होगी के साथ ऐसे आदेश की एक प्रति, न्यायालय द्वारा आवेदन को अन्तिम रूप से सुनवाई के समय लोक अभियोजक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने की दृष्टि से, लोक अभियोजक और पुलिस अधीक्षक को देगा।
(ख) अग्रिम जमानत चाहने वाले आवेदक की उपस्थिति, यदि लोक अभियोजक द्वारा इसके लिये
दिये आवेदन पर न्यायालय यह विचार करता है कि न्याय हित में ऐसी उपस्थिति आवश्यक है तो न्यायालय
द्वारा आवेदन की अन्तिम सुनवाई और अन्तिम आदेश पारित करते समय, बाध्यकर होगी।]
(2) जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अधीन निदेश देता है तब वह उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्तें, जो वह ठीक समझे, सम्मिलित कर सकता है जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं,
(i) यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और जब अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा;
(ii) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा
(iii) यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोड़ेगा : (iv) ऐसी अन्य शर्ते जो धारा 437 की उपधारा (3) के अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती हैं। मानो उस धारा के अधीन जमानत स्वीकृत की गई हो।
(3) यदि तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, तथा यदि ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारण्ट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के निदेश के अनुरूप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा।
संशोधन:-
1दण्ड प्रक्रिया संहिता ( संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 38 (23.06.2006 से प्रभावी) द्वारा निम्नलिखित उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित :
" (1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है तो यह इस धारा के अधीन निदेश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है; और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए।"
2- 1976 का उ. प्र. अधिनियम संख्या 16 (28.11.1976 से प्रभावी) के अनुसार यह धारा उत्तर प्रदेश में लागू नही थी।
3-The state assembly passed ‘The Code of Criminal Procedure (Uttar Pradesh Amendment) Bill, 2018 on August 31, 2018, for the restoration of anticipatory bail in the state.
दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक-2018 विधानमंडल में पारित कराकर राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा गया था, जिसे राष्ट्रपति ने एक जून, 2019 को मंजूर करते हुए हस्ताक्षर कर दिए। ऐसे में संशोधित अधिनियम छह जून, 2019 से यूपी में लागू हो गया है। अब अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अभियुक्त का उपस्थित रहना भी जरूरी नहीं होगा।
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