विवाहित महिलाओं के कानूनी अधिकार‚ जरूर जानें
1- गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार
भारत के संविधान ने जिस तरह से गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को दिया है, इस तरह महिला को भी चाहे वह विवाहित हो चाहे अविवाहित हो गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार दिया गया है |भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है, Right to life and personal libery" में गरिमापूर्ण जीवन जीना शामिल है |
अब देखते हैं कुछ और महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार जो भारत के विभिन्न कानून में विवाहित महिला को दिए गए हैं |
2- स्त्रीधन का अधिकार
शादी के बाद यदि कोई भी व्यक्ति पति या पति के घर वाले सास ससुर देवर देवरानी गीत जेठानी नंद इनमें से कोई भी व्यक्ति यदि विवाहित महिला के किसी भी स्त्रीधन को, मैं यहां पर आपको बताता चलूं की शादी में महिला को चाहे उसके मायके वालों द्वारा दिया गया या फिर ससुराल वालों द्वारा या यार दोस्तों रिश्तेदारों और मित्रों के द्वारा किसी भी तरीके का कोई उपहार ज्वेलरी दी गई हो, यह सब स्त्रीधन में आता है| विवाहित महिला के अगर ससुराल पक्ष के किसी भी व्यक्ति के द्वारा उसकी ज्वेलरी या किसी भी तरीके का कोई सामान ले लिया जाता है और फिर उसको नहीं दिया जाता तो भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत महिला ससुराल वालों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कर सकती है | धारा 406 में "Criminal Breach of Trust" यानी अपराधिक न्यास भंग के अपराध के बारे में बताया गया है, यह एक संज्ञेय अपराध होता है , इसमें 3 साल तक की सजा का प्रावधान दिया गया है |
3- क्रूरता के विरुद्ध अधिकार
अब देख लेते हैं भारतीय दंड संहिता के एक महत्वपूर्ण दूसरे प्रावधान को धारा 498A किसी भी शादीशुदा महिला को पति या पति के किसी भी नातेदार के द्वारा नातेदार में परिवार के सभी सदस्य आते हैं, अगर किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है क्रूरता की जाती है, चाहे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाए या शारीरिक रूप सेप्रताड़ित किया जाए या दहेज की मांग को लेकर प्रताड़ित किया जाए या महिला के रंग रूप वेशभूषा या उसकी भाषा या बच्चे पैदा होने को लेकर के किसी भी तरीके का ताना दिया जाए यह मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में आता है, तो अगर इस तरीके के कोई व्यवहार ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा वैवाहिक महिला के साथ किया जाता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत वह थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर सकती है, साथ ही साथ अगर पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करती तो अदालत से भी मुकदमा दर्ज करा सकती है|
अगर किसी महिला के साथ किसी तरीके की गली गलौज या मारपीट या धमकी दी जाती है तो धारा 498ए के साथ-साथ धारा 323 504 506 आईपीसी के तहत भी एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है |
सन 2005 में एक बहुत महत्वपूर्ण अधिनियम पारित किया गया घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम इस अधिनियम के तहत भी अगर किसी महिला के साथ शारीरिक मानसिक आर्थिक यहां तक की भावनात्मक या लैंगिक हिंसा भी की जाती है तो वह धारा 12 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट की न्यायालय में परिवाद दाखिल कर सकती है|घरेलू हिंसा के वाद में विभिन्न तरीके के उपचार महिला प्राप्त कर सकती है, मैं यहां पर यदि आपको बताता चलूं की घरेलू हिंसा का मुकदमा न सिर्फ वैवाहिक महिला के द्वारा बल्कि किसी भी पीड़ित महिला के द्वारा किया जा सकता है, जहां तक घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न तरीके के उपचार का संबंध है तो घरेलू हिंसा में बच्चों की कस्टडी, भरण पोषण, घर में रहने का अधिकार, और मुकदमा चलने के दौरान धारा 23 के तहत अंतरिम आदेश भी प्राप्त कर सकती है| घरेलू हिंसा में महिला न्यायालय से कह सकती है कि कि जिस घर में महिला शादी के बाद विदा होकर के आई थी उसे घर से उसे निकाल ना जाए इस तरीके से घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 से लेकर धारा 23 तक निवास के अधिकार से लेकर भरण पोषण का अधिकार, बच्चों को कस्टडी में लेने का अधिकार, और Compensation के अधिकार जैसे उपचार प्राप्त कर सकती है|
4-गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार का अधिकार
भरण पोषण प्रावधानों के बारे में भी एक नजर डाल देते हैं ,शादी के बाद महिला का पति यदि महिला को भारत पोषण नहीं दिया जाता आवश्यकता के अनुसार उसकी खर्चा नहीं दिया जाता तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत उस महिला के द्वारा अपने लिए और अपने बच्चों के लिए अपने पति से भरण पोषण की मांग की जा सकती है |पारिवारिक न्यायालय में धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है|
तो यह थे साथियों कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार जो एक शादीशुदा महिला को भारत के विभिन्न कानून में दिए गए हैं|
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