भारत में गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के कानूनी अधिकार (Legal Rights of Arrested Persons in India)
भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने का अधिकार व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इंसानांे के महत्वपूर्ण बुनियादी अधिकारों को मानवाधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय घोषणा के तहत भारत के संविधान व भारत के अन्य महत्वपूर्ण कानूनों में भी समुचित जगह दी गई है। इसीलिये अन्य देशों की तरह भारत में भी विधि के अनुसार गिरफ्तार किये गये किसी भी व्यक्ति को उसके बुनियादी विधिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। अपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांत ‘‘कि प्रत्येक व्यक्ति दोषी साबित होने तक निर्दोष है‘‘ को ध्यान में रखते हुए भारत में गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को निम्नलिखित महत्वपूर्ण विधिक अधिकार प्रदान किये गये हैं-
1. गिरफ्तारी का आधार जानने का अधिकार (Right to know the ground of arrest)
भारत के संविधान के अनु0 22(1) में कहा गया है कि, ‘‘पुलिस अधिकारी को किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताये बिना गिरफ्तार नहीं करना चाहिये।‘‘ इसी के साथ-साथ धारा 50(1) दं0प्र0सं0 में यह प्रावधान किया गया है कि किसी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार करने वाले प्रत्येक पुलिस पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को, अपराध के बारे में जिसके लिये उसे गिरफ्तार किया गया है। सम्पूर्ण जानकारी देगा। व्यक्ति को गिरफ्तार किये गये आधारों के बारे में भी बतायेगा। विधिक रूप से गिरफ्तार करने वाला पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के अधिकारों को बताने से मना नहीं कर सकता।
2. पुलिस पूछताछ के दौरान एडवोकेट से मिलने व विधिक सलाह का अधिकार Right to meet an advocate of his choice sec 41(d) CrPc
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41(डी) में यह प्रावधान दिया गया है कि पुलिस पूछताछ के दौरान गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को अपने अधिवक्ता से मिलने से नहीं रोका जायेगा।
3. जमानत पाने का अधिकार Right to release on bail – Sec. 50(2) CrPc.
दंण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50(2) में यह प्रावधान दिया गया है कि जहाॅं कोई पुलिस अधिकारी अजमानतीय अपराध के अभियुक्त से भिन्न किसी व्यक्ति को वारण्ट के बिना गिरफ्तार करता है, वहाॅं वह गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को सूचित करेगा कि उसे जमानत पर रिहा करने और जमानतगीरों की व्यवस्था करने का अधिकार है।
4. गिरफ्तारी की सूचना नामित व्यक्ति को देने का अधिकार - Right to inform about the arrest to nominated person – sec 50(A) CrPc
धारा 50(ए) दण्ड प्रक्रिया संहिता में यह प्रावधान दिया गया है कि गिरफ्तारी करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति ऐसी गिरफ्तारी या उस स्थान के बारे मंे जहाॅं गिरफ्तार किया गया व्यक्ति रखा जा रहा है, की जानकारी उसके मित्रों, नातेदारांे या ऐसे अन्य व्यक्ति को जो गिरफ्तार किये गये व्यक्ति द्वारा इस जानकारी को देने के लिये नामित किया गया हो, को तुरन्त जानकारी देगा।
5. चिकित्सक द्वारा जाॅच का अधिकार - (Right to medical Examination by medical practitioner _ Sec 54 CrPc.)
धारा 54 में यह प्रावधान किया गया है कि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति यदि यह अभिकथन करता है कि उसके शरीर के परीक्षा से ऐसा साक्ष्य प्राप्त होगा जो उसके द्वारा किसी अपराध को किये जाने को नासाबित कर देगा, या जो यह साबित करेगा कि उसके शरीर के विरूद्ध किसी अन्य व्यक्ति ने कोई अपराध किया था, तो यदि गिरफ्तार किये गये व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट से ऐसा करने की प्रार्थना की जाती है तो यदि मजिस्ट्रेट उचित समझता है तो गिरफ्तार व्यक्ति की रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा चिकित्सीय परीक्षण कराने का आदेश दे सकता है।
6. 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने का अधिकार - (Person arrested not to be detained more than 24 hours – Sec 57 CrPc)
दण्ड प्रकिया संहिता की धारा 57में यह अधिकार दिया गया है कि कोई भी पुलिस अधिकारी वारंट के बिना गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर 24 घण्टे के अन्दर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा।
7. झूठी गिरफ्तारी में मुआवजा पाने का अधिकार (Compensation to persons groundlessly arrested) – sec 358 CrPc
दण्ड प्रकिया संहिता की धारा 358 में यह प्रावधान दिया गया है कि यदि व्यक्ति को बिना किसी आधार के गिरफ्तार यिा गया है तो उसे प्रतिकर पाने का अधिकार है।
दण्ड प्रकिया संहिता की धारा 41(बी) में यह कहा गया है कि गिरफ्तारी के समय स्पष्ट एवं सटीक बैच धारण करना चाहिये, जिसमंे पुलिस अधिकारी का नाम व पद स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा हो। गिरफ्तारी के समय, गिरफ्तारी की तारीख, स्थान आदि का उल्लेख करते हुए एक गिरफ्तारी मेमो भी तैयार करना चाहिये।
8. हथकड़ी न लगाने का अधिकार -
प्रेमशुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन 1980 AIR 1535 SC के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि जब तक असाधारण परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती तब तक कैदियों को नियमित रूप से हथकड़ी नहीं लगानी चाहिये।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के अधिकारों के लिये ‘डीके बसू बनाम पश्चिम बंगाल‘ एवं अन्य के मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए दिशा-निर्देश जारी किये गये थे, उन दिशा-निर्देशों को मानना हर पुलिस अधिकारी का विधिक दायित्व है। किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त मामले में जारी किये गये दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर अदालत की अवमानना के साथ साथ विभागीय कार्यवाही के लिये उत्तरदायी होगा।